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लघुकथाएँ

नया सफर

पद्मजा शर्मा


ट्रेन में सफर कर रहे युवक को सामने बैठी युवती कब से एकटक घूरे जा रही थी। युवक आँखें बंद करता मगर खोलते ही पाता कि एक जोड़ी आँखें उस पर टिकी हैं। युवक खिड़की से बाहर झाँकता और जैसे ही गर्दन भीतर की ओर घुमाता वह उन आँखों को अपने चेहरे पर पाता। वह अखबार पढ़ता और जब पृष्ठ पलटता तो देखता कि कोई उसे पढ़ रहा है।

अब तक युवक असहज हो गया था। सफर जितना कट गया था उतना ही बाकी भी था। वह हिम्मत जुटाकर युवती के पास पहुँचा और पूछा - 'आप मुझे यूँ लगातार क्यों देखे जा रही हैं?'

'अब नहीं देखूँगी'। युवती ने नजरें झुकाते हुए सहजता से जवाब दिया।

'पर देख क्यों रही थीं?'

'कोई चेहरा मन को भा जाए तो आँखों को कोई कैसे रोक पाए?' मासूम-सा जवाब पाकर झेंपता सा युवक अपनी सीट पर चला गया। युवती ने अपनी नजरें नीची कर लीं।

युवती ने गंतव्य स्थल आने पर निगाहें उठाई। देखा, युवक उसे घूरे जा रहा है।

ट्रेन रुकी। वे उतरे। अब दोनों आमन-सामने थे। एक-दूसरे की आँखों में डूबते-उतराते एक-दूसरे की ओर खिंचे चले आ रहे थे।

उनका पुराना सफर खत्म हो चुका था। और नए सफर की शुरुआत हो रही थी।


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